▪ विटामिन डी की कमी से हो जाते है त्वचा के रोग।
▪ सूर्य की किरणें होती है विटामिन डी का मुख्य स्रोत।
▪ कॉड लीवर ऑयल, मछली से भी मिलता है विटामिन डी।
▪ चर्म रोगी खाने के साथ लापरवाही ना बरतें, पहरेज रखें।
▪ सूर्य की किरणें होती है विटामिन डी का मुख्य स्रोत।
▪ कॉड लीवर ऑयल, मछली से भी मिलता है विटामिन डी।
▪ चर्म रोगी खाने के साथ लापरवाही ना बरतें, पहरेज रखें।
● स्वस्थ त्वचा सभी को भाती है। शरीर के अन्दर व बाहर होने वाले
परिवर्तनों का सबसे जल्दी व अधिक प्रभाव शरीर की बाहरी त्वचा पर पड़ता है।
त्वचा की चमक ही बाहरी सौन्दर्य का आधार माना जाता है। वैसे त्वचा की चमक
के कई अन्य कारण भी होते हैं लेकिन हम प्रकृति के सम्पर्क में जितना अधिक
रहते हैं, उतनी ही हमारी त्वचा सुन्दर व आकर्षक रहती है। प्रकृति से हमारा
अर्थ विटामिन डी से है जो हमें सूरज की रोशनी से मिलता है। जो लोग लम्बे
समय तक वातानुकूलित वातावरण में रहते हैं तथा सूर्य के सम्पर्क में कम आते
है, उनको त्वचा रोग जल्दी होने की सम्भावना रहती है।
1) त्वचा रोग
वातावरण में धूल, मिट्टी व प्रदूषण के कारण त्वचा के बाहरी छिद्र बन्द हो जाते हैं जिससे त्वचा के आन्तरिक विकारों का निकलना बन्द हो जाता है। इससे बाहरी व आन्तरिक त्वचा के विकार बीच में ही इकट्ठे होकर त्वचा रोग के रूप में दाद, खुजली, एक्जिमा आदि अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा कर देते हैं। त्वचा रोग का एक दूसरा बड़ा कारण पेट रोग भी है। आयुर्वेद का मानना है कि पेट साफ रहने से त्वचा रोग कम होते हैं। लम्बे समय तक कब्ज रहने से त्वचा की चमक फीकी पड़ने लगती है। नींद की कमी, मानसिक तनाव, शारीरिक श्रम का अभाव, एसिड की अधिकता, पाचन तंत्र की कमजोरी से बॉडी का सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इसके प्रभाव से त्वचा में रूखा व खुरदरापन आ जाता है। इससे कम आयु में ही व्यक्ति बूढ़ा लगने लगता है। आनुवंशिक कारणों से भी त्वचा रोग होता है।
2) विटामिन डी से लाभ
प्रकृति ने सूर्य की धूप मुफ्त में प्रदान की है। धूप से विटामिन डी मिलता है जो त्वचा की ऊपरी व अन्दरूनी सतह के विकारो को दूर करता है। सूर्य का किरणे त्वचा के लिये रामबाण है। सूर्य का हरा रंग आंखों के रोग, मधुमेह, चर्म रोग, दाद, खुजली, जुकाम, व सिरदर्द में लाभदायक होता है।जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन डी का निर्माण करती हैं।अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वॉयलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन डी की आवश्यकता पूरी हो जाती है। सूर्य की किरणों के बाद कॉड लीवर ऑयल विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत है। इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन, मछलियां जैसे साल्मन, ट्यूना, मैकेरल, सार्डिन भी विटामिन डी का अच्छा स्रोत हैं।
भोजन में जरा-सी भी बदपरहेजी करने से रोग दोबारा आक्रमण कर सकता है, इसलिए चर्म रोग से ग्रसित रोगी को उचित खाद्य पदार्थों का चुनाव करना चाहिए। चाय, काफी वगैरह से भी परहेज करना उचित होगा।
1) त्वचा रोग
वातावरण में धूल, मिट्टी व प्रदूषण के कारण त्वचा के बाहरी छिद्र बन्द हो जाते हैं जिससे त्वचा के आन्तरिक विकारों का निकलना बन्द हो जाता है। इससे बाहरी व आन्तरिक त्वचा के विकार बीच में ही इकट्ठे होकर त्वचा रोग के रूप में दाद, खुजली, एक्जिमा आदि अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा कर देते हैं। त्वचा रोग का एक दूसरा बड़ा कारण पेट रोग भी है। आयुर्वेद का मानना है कि पेट साफ रहने से त्वचा रोग कम होते हैं। लम्बे समय तक कब्ज रहने से त्वचा की चमक फीकी पड़ने लगती है। नींद की कमी, मानसिक तनाव, शारीरिक श्रम का अभाव, एसिड की अधिकता, पाचन तंत्र की कमजोरी से बॉडी का सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इसके प्रभाव से त्वचा में रूखा व खुरदरापन आ जाता है। इससे कम आयु में ही व्यक्ति बूढ़ा लगने लगता है। आनुवंशिक कारणों से भी त्वचा रोग होता है।
2) विटामिन डी से लाभ
प्रकृति ने सूर्य की धूप मुफ्त में प्रदान की है। धूप से विटामिन डी मिलता है जो त्वचा की ऊपरी व अन्दरूनी सतह के विकारो को दूर करता है। सूर्य का किरणे त्वचा के लिये रामबाण है। सूर्य का हरा रंग आंखों के रोग, मधुमेह, चर्म रोग, दाद, खुजली, जुकाम, व सिरदर्द में लाभदायक होता है।जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन डी का निर्माण करती हैं।अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वॉयलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन डी की आवश्यकता पूरी हो जाती है। सूर्य की किरणों के बाद कॉड लीवर ऑयल विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत है। इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन, मछलियां जैसे साल्मन, ट्यूना, मैकेरल, सार्डिन भी विटामिन डी का अच्छा स्रोत हैं।
भोजन में जरा-सी भी बदपरहेजी करने से रोग दोबारा आक्रमण कर सकता है, इसलिए चर्म रोग से ग्रसित रोगी को उचित खाद्य पदार्थों का चुनाव करना चाहिए। चाय, काफी वगैरह से भी परहेज करना उचित होगा।