देखने में आता है की जब किसी को कैंसर होता है तो रोगी तो घबरा ही जाता
है इसके अतिरिक्त रोगी के रिश्तेदार भी उसको 50 तरह की सलाह दे देते हैं..
और रोगी के परिजन यह समझ ही नही पाते की क्या किया जाए.
कोई रिश्तेदार बताता है की फलानी जगह पर फलाने बाबा जी हैं जो चमत्कारी गोली दे कर कैंसर को सही कर देते हैं. और परिजन बाबा जी से गोली ले आते हैं.. और कई माह तक चमत्कार की आस लगाए रहते हैं. जोकि होना ही नही होता.
पर तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है और या तो रोगी स्वर्ग सिधार जाता है और या तो कैंसर अपने भयानक स्वरूप में आ चुका होता है. ऐसे कई केस हमारे पास आ चुके हैं.. इसी लिए हमें विस्तार से पता है.
कोई रिश्तेदार बताता है की फलानी जगह पर फलाने बाबा जी हैं जो चमत्कारी गोली दे कर कैंसर को सही कर देते हैं. और परिजन बाबा जी से गोली ले आते हैं.. और कई माह तक चमत्कार की आस लगाए रहते हैं. जोकि होना ही नही होता.
पर तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है और या तो रोगी स्वर्ग सिधार जाता है और या तो कैंसर अपने भयानक स्वरूप में आ चुका होता है. ऐसे कई केस हमारे पास आ चुके हैं.. इसी लिए हमें विस्तार से पता है.
अँग्रेज़ी चिकित्सा और आयुर्वेद आख़िर कैंसर को सही कैसे करते हैं..? ये भी समझ लीजिए.
अँग्रेज़ी चिकित्सा में अधिकतम प्रयोग कीमो का होता है.. कीमो आपके शरीर में कोशिका निर्माण को रोक देती है जिससे अच्छी कोशिकाएँ और कैंसर कोशिकाएँ दोनो ही बननी बंद हो जाती हैं. और जिस दिन कैंसर कोशिकाएँ स्वयं समाप्त हो जाती हैं तो कीमो को बंद कर दिया जाता है. आज कल अन्य कई प्रकार की कीमो भी उपलब्ध हैं. पर इनके दुष्प्रभाव काफ़ी ज़्यादा हैं और ये बात डाक्टर भी मानते हैं.
आयुर्वेदिक उपचार में अँग्रेज़ी उपचार से बिल्कुल उल्टा होता है. डॉक्टर अंकल के आयुर्वेदिक उपचार से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है और इस स्तर तक बढ़ा लिया जाता है जिससे की शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खुद ही कैंसर को मारना आरंभ कर दे.
और यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना एक पूरी प्रक्रिया है जिसमे आहार,
विहार एवं आयुषधियाँ सभी सम्मिलित हैं जिनका निर्धारण रोग एवं रोगी की स्थिति के अनुसार किया जाता है.
डॉक्टर अंकल का कहना है कि कोई एक निश्चित आयुषधि आयुर्वेद में नहीं बनी है जिसे लेते ही आपका कैंसर सही हो जाए. कैंसर को नष्ट करने के लिए आपको पूरी प्रक्रिया से गुज़रना ही होगा जिसमें संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम एवं आयुषधियाँ शामिल हैं.
आयुर्वेद से कैंसर की चिकित्सा में 3 माह से लेकर 2 वर्ष तक का समय लग सकता है इसलिए रोगी को धैर्य के साथ उपचार लेना चाहिए. उपचार का प्रभाव रोगी को प्रथम 2 से 3 माह में ही नज़र आने लग जाता है किंतु इसका ये अर्थ बिल्कुल भी नही है की आप बीच में उपचार को बंद कर दें. उपचार पूरा लें. जब तक की कैंसर जड़ से समाप्त ना हो जाए....डॉक्टर अंकल
आशा है की आपको समझ आ गया होगा की बाबा जी की गोली क्यों नहीं लेनी है.
कुछ केसों में आयुर्वेदिक और अँग्रेज़ी दोनो उपचार भी साथ साथ चल सकते हैं.. इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं है.
अँग्रेज़ी चिकित्सा में अधिकतम प्रयोग कीमो का होता है.. कीमो आपके शरीर में कोशिका निर्माण को रोक देती है जिससे अच्छी कोशिकाएँ और कैंसर कोशिकाएँ दोनो ही बननी बंद हो जाती हैं. और जिस दिन कैंसर कोशिकाएँ स्वयं समाप्त हो जाती हैं तो कीमो को बंद कर दिया जाता है. आज कल अन्य कई प्रकार की कीमो भी उपलब्ध हैं. पर इनके दुष्प्रभाव काफ़ी ज़्यादा हैं और ये बात डाक्टर भी मानते हैं.
आयुर्वेदिक उपचार में अँग्रेज़ी उपचार से बिल्कुल उल्टा होता है. डॉक्टर अंकल के आयुर्वेदिक उपचार से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है और इस स्तर तक बढ़ा लिया जाता है जिससे की शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खुद ही कैंसर को मारना आरंभ कर दे.
और यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना एक पूरी प्रक्रिया है जिसमे आहार,
विहार एवं आयुषधियाँ सभी सम्मिलित हैं जिनका निर्धारण रोग एवं रोगी की स्थिति के अनुसार किया जाता है.
डॉक्टर अंकल का कहना है कि कोई एक निश्चित आयुषधि आयुर्वेद में नहीं बनी है जिसे लेते ही आपका कैंसर सही हो जाए. कैंसर को नष्ट करने के लिए आपको पूरी प्रक्रिया से गुज़रना ही होगा जिसमें संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम एवं आयुषधियाँ शामिल हैं.
आयुर्वेद से कैंसर की चिकित्सा में 3 माह से लेकर 2 वर्ष तक का समय लग सकता है इसलिए रोगी को धैर्य के साथ उपचार लेना चाहिए. उपचार का प्रभाव रोगी को प्रथम 2 से 3 माह में ही नज़र आने लग जाता है किंतु इसका ये अर्थ बिल्कुल भी नही है की आप बीच में उपचार को बंद कर दें. उपचार पूरा लें. जब तक की कैंसर जड़ से समाप्त ना हो जाए....डॉक्टर अंकल
आशा है की आपको समझ आ गया होगा की बाबा जी की गोली क्यों नहीं लेनी है.
कुछ केसों में आयुर्वेदिक और अँग्रेज़ी दोनो उपचार भी साथ साथ चल सकते हैं.. इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं है.