मसाले एक ओर जहाँ सब्जियों का स्वाद बढाते हैं वहीं दूसरी ओर ये औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं। मसालों का उपयोग हिन्दुस्तानी रसोई में व्यंजनों के स्वाद को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। मसालों
के औषधीय गुणों का जिक्र आयुर्वेद में भी खूब किया गया है। भारतीय किचन में
तेजपान भी एक प्रचलित मसाले के तौर पर अपनाया जाता है। हलाँकि तेजपान की
खेती वृहद स्तर पर दक्षिण भारत में की जाती है लेकिन इसकी उपलब्धता भारत
में हर जगह पर है। तेजपान को मध्यभारत के आदिवासी तेजपत्ता के नाम से जानते
हैं हलाँकि इसका वानस्पतिक नाम सिन्नामोमम तमाला है। तेज पान के पत्तों के
अलावा पौधे के तमाम अन्य अंग औषधीय गुणों की खान है। चलिए आज जिक्र करते
हैं इसी तेजपान के औषधीय महत्व का और जानते है किस तरह आदिवासी तेजपान का
इस्तमाल विभिन्न हर्बल नुस्खों में करते हैं।
तेजपान के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
तेजपान के पत्तियों में कृमिनाशक गुण पाए जाते हैं। सूखी पत्तियों का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन रात में सोने से पहले २ ग्राम, गुनगुने पानी के साथ मिलाकर पिया जाए तो पेट के कृमि मर कर मल के साथ बाहर निकल आते है।
पत्तियों का चूर्ण पेशाब संबंधित समस्याओं में भी फायदा करता है। दिन में दो बार 2-2 ग्राम चूर्ण का सेवन खाना खाने के बाद किया जाए तो पेशाब से जुडी कई तरह की समस्याओं से निजात मिल जाती है।
तेजपान की छाल का चूर्ण हृदय के बेहतर स्वास्थ के लिए उत्तम माना जाता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार प्रतिदिन खाने में तेजपान के छाल की थोडी सी मात्रा मसाले के तौर पर उपयोग में लायी जाए तो यह दिल के रोगियों के लिए स्वास्थय वर्धक होता है।
जिन्हें हाईपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो, उन्हें भी तेजपान को अपनी रोजमर्रा भोजन शैली का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। माना जाता है कि व्यंजनों में तेजपान का इस्तमाल कई मायनों में सेहत के लिए अत्यंत उत्तम होता है।
तेजपान के पेड की छाल का चूर्ण (२ ग्राम) पानी में डुबोकर आधे घंटे के लिए रखा जाए और बाद में इसका सेवन कर लिया जाए तो यह डायबिटीस के रोगियों के लिए उत्तम होता है। आदिवासी मानते है कि लगातार दिन में दो बार इस फार्मुले का सेवन करते रहने से जल्द ही शरीर में शर्करा की मात्रा में नियंत्रण हो जाता है। आदिवासियों की इस बात की पैरवी तो आधुनिक शोध भी करती हैं।
तेजपान के पेड की छाल और पत्तियों का चूर्ण समान मात्रा में (1-1 ग्राम) 15 दिनों तक लगातार लेने से लिवर (यकृत) संबंधित समस्याओं में आराम मिलता है।
गैस की समस्या या पेट दर्द या अम्लता बढने पर चुटकी भर तेजपान के पत्तों का चूर्ण कच्चे जीरे के साथ चबाने से तेजी से राहत मिल जाती है। डाँगी आदिवासी पेट से जुडी किसी भी तरह की समस्या के लिए इस फार्मुले के सेवन की सलाह देते हैं।
तेजपान के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
तेजपान के पत्तियों में कृमिनाशक गुण पाए जाते हैं। सूखी पत्तियों का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन रात में सोने से पहले २ ग्राम, गुनगुने पानी के साथ मिलाकर पिया जाए तो पेट के कृमि मर कर मल के साथ बाहर निकल आते है।
पत्तियों का चूर्ण पेशाब संबंधित समस्याओं में भी फायदा करता है। दिन में दो बार 2-2 ग्राम चूर्ण का सेवन खाना खाने के बाद किया जाए तो पेशाब से जुडी कई तरह की समस्याओं से निजात मिल जाती है।
तेजपान की छाल का चूर्ण हृदय के बेहतर स्वास्थ के लिए उत्तम माना जाता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार प्रतिदिन खाने में तेजपान के छाल की थोडी सी मात्रा मसाले के तौर पर उपयोग में लायी जाए तो यह दिल के रोगियों के लिए स्वास्थय वर्धक होता है।
जिन्हें हाईपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो, उन्हें भी तेजपान को अपनी रोजमर्रा भोजन शैली का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। माना जाता है कि व्यंजनों में तेजपान का इस्तमाल कई मायनों में सेहत के लिए अत्यंत उत्तम होता है।
तेजपान के पेड की छाल का चूर्ण (२ ग्राम) पानी में डुबोकर आधे घंटे के लिए रखा जाए और बाद में इसका सेवन कर लिया जाए तो यह डायबिटीस के रोगियों के लिए उत्तम होता है। आदिवासी मानते है कि लगातार दिन में दो बार इस फार्मुले का सेवन करते रहने से जल्द ही शरीर में शर्करा की मात्रा में नियंत्रण हो जाता है। आदिवासियों की इस बात की पैरवी तो आधुनिक शोध भी करती हैं।
तेजपान के पेड की छाल और पत्तियों का चूर्ण समान मात्रा में (1-1 ग्राम) 15 दिनों तक लगातार लेने से लिवर (यकृत) संबंधित समस्याओं में आराम मिलता है।
गैस की समस्या या पेट दर्द या अम्लता बढने पर चुटकी भर तेजपान के पत्तों का चूर्ण कच्चे जीरे के साथ चबाने से तेजी से राहत मिल जाती है। डाँगी आदिवासी पेट से जुडी किसी भी तरह की समस्या के लिए इस फार्मुले के सेवन की सलाह देते हैं।