चावल घर-घर में पकाया जाने वाला एक प्रमुख खाद्यान्न है। धान से छिलके उतार लिए जाए तो प्राप्त दाने चावल कहलाते हैं और पके
हुए चावल को लोग भात के नाम से भी जानते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ओरायजा
सटाईवा है। चावल के शीतल एवं शक्तिवर्द्धक होने के कारण दुनिया भर के लोग
चावल का उपयोग दैनिक भोजन के रूप में करते हैं। चावल मुख्यत: बारिश के मौसम
की फसल होती है, जो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है। खाने के अलावा इसका
कोई औषधीय महत्व हो सकता है, इस बात को शायद कम लोग ही जानते हैं। मध्य
भारत और भारत के तमाम आदिवासी हिस्सों में लोग खाद्यान्न के अलावा चावल का
उपयोग विभिन्न रोगों के निवारण के लिए भी करते हैं। आज जानते हैं,
मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी इलाकों में लोग चावल को किस तरह औषधि के
तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
चावल के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।
आदिवासी चावलों की किनकी (छोटे टूटे टुकड़े) को छाछ में पका कर महेरी नामक व्यंजन बनाते है। यह छोटे बच्चों और बीमार लोगों के लिए यह बहुत गुणकारी होता है।
यदि चावल के दानों को बारीक पीस लिया जाए और इसे पानी में मिलाकर चेहरे पर हल्के-हल्के रोजाना मला जाए तो यह चेहरे से धब्बों और निशान को मिटा देता है।
पातालकोट के आदिवासी चावल को आटे की तरह बारीक पीस लेते हैं और लगभग 250 ग्राम 1 लीटर पानी में उबालकर पकाते हैं। फिर छान कर स्वादानुसार नमक मिला लेते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इसे बच्चों को 1/2 कप और जवानों को 1 कप प्रत्येक घंटे के अंतराल से पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
पातालकोट में आदिवासी पके हुए चावल को एक बर्तन में लेकर किसी अंधेरी जगह पर रख देते हैं। 10 दिनों के बाद इस बर्तन में रखा भात सड़ जाता है। इसे फेंटकर पैरों की बिवाइयों पर लगाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से पैरों की फटी एड़ियां ठीक हो जाती हैं।
डांग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार देर तक पका हुआ भात और दही साथ मिलाकर खाने से दस्त रुक जाते हैं और जिन्हें अपचन की शिकायत हो, यह शिकायत भी दूर हो जाती है। आदिवासियों के अनुसार भात और आलू का सेवन एक साथ करने से अपच और गैस होने की संभावना ज्यादा होती है।
डांग- गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि चावल का गर्म-गर्म पानी लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से मोटापा दूर होता है। पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि पके हुए चावल के गर्म पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से मोटापा कम करने में मदद मिलती है।
ज्यादा सिर दर्द होने पर चावल उबाले हुए पानी के साथ दो चुटकी सोंठ का चूर्ण मिलाकर माथे पर लगाया जाए तो आराम मिल जाता है। कहा जाता है कि अक्सर ऐसा दोहराते रहने से माइग्रेन को रोगियों को भी फायदा पहुंचता है।
कच्चे चावल के दानों को दिन में दो तीन बार चबाने से प्यास कम लगती है। ऐसा माना जाता है कि चावलों का पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।
चावल के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।
आदिवासी चावलों की किनकी (छोटे टूटे टुकड़े) को छाछ में पका कर महेरी नामक व्यंजन बनाते है। यह छोटे बच्चों और बीमार लोगों के लिए यह बहुत गुणकारी होता है।
यदि चावल के दानों को बारीक पीस लिया जाए और इसे पानी में मिलाकर चेहरे पर हल्के-हल्के रोजाना मला जाए तो यह चेहरे से धब्बों और निशान को मिटा देता है।
पातालकोट के आदिवासी चावल को आटे की तरह बारीक पीस लेते हैं और लगभग 250 ग्राम 1 लीटर पानी में उबालकर पकाते हैं। फिर छान कर स्वादानुसार नमक मिला लेते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इसे बच्चों को 1/2 कप और जवानों को 1 कप प्रत्येक घंटे के अंतराल से पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
पातालकोट में आदिवासी पके हुए चावल को एक बर्तन में लेकर किसी अंधेरी जगह पर रख देते हैं। 10 दिनों के बाद इस बर्तन में रखा भात सड़ जाता है। इसे फेंटकर पैरों की बिवाइयों पर लगाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से पैरों की फटी एड़ियां ठीक हो जाती हैं।
डांग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार देर तक पका हुआ भात और दही साथ मिलाकर खाने से दस्त रुक जाते हैं और जिन्हें अपचन की शिकायत हो, यह शिकायत भी दूर हो जाती है। आदिवासियों के अनुसार भात और आलू का सेवन एक साथ करने से अपच और गैस होने की संभावना ज्यादा होती है।
डांग- गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि चावल का गर्म-गर्म पानी लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से मोटापा दूर होता है। पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि पके हुए चावल के गर्म पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से मोटापा कम करने में मदद मिलती है।
ज्यादा सिर दर्द होने पर चावल उबाले हुए पानी के साथ दो चुटकी सोंठ का चूर्ण मिलाकर माथे पर लगाया जाए तो आराम मिल जाता है। कहा जाता है कि अक्सर ऐसा दोहराते रहने से माइग्रेन को रोगियों को भी फायदा पहुंचता है।
कच्चे चावल के दानों को दिन में दो तीन बार चबाने से प्यास कम लगती है। ऐसा माना जाता है कि चावलों का पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।